आज हिन्दी पत्रकारिता अपने गुणवत्ता, प्रसार, कला कौशल तथा तकनीकि सभी मामलों में विश्व की श्रेष्ठतम पत्रकारिता में सम्मिलित हो चुकी है। जहाँ पर पाश्चात्य पत्रकारिता अपने भौतिकता के कारण जानी जाती है वहीं हिन्दी पत्रकारिता उच्चकोटि के उदात्त मानवीय मूल्यों का पर्याय मानी जाती है। पत्रकारिता के इतिहास में हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता का हमेशा से विशिष्ट स्थान रहा है। यहाँ साहित्य की विविध विधाओं को विशेष प्रयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति दी जाती है। ये विधाएँ आलोचना, काव्य, कथा-साहित्य, नाट्य, निबंध, संस्मरण, साक्षात्कार, समीक्षा, समकालीन साहित्य विमर्श, तुलनात्मक साहित्य तथा साहित्य-संस्कृति आदि पर केन्द्रित होती है। इन विधाओं को पत्र-पत्रिकाओं (मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिक, वार्षिक) के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। जाहिर है इस प्रस्तुतिकरण के संयोजन व संपादन के लिए पत्रकारिता के माध्यम का सहारा लेना पड़ता है और इस प्रक्रिया के साथ ही साहित्यिक पत्रकारिता की शुरुआत समझी जा सकती है।
जन-संवेदना के संचार का सर्वसुलभ प्रभावकारी जन-माध्यम ही पत्रकारिता है। पत्रकारिता अभिव्यक्ति का सम्पूर्ण विज्ञान है, आदर्श कला है, उत्तम व्यवसाय है और मानव-चेतना का का उद्दीपक है। युग बोध के प्रमुख तत्वों के साथ ही मानवता के विकास और विचारोत्तेजन का राजमार्ग ही पत्रकारिता है जिससे जन-जीवन पल-पल पर उद्वेलित होता रहता है। समाज, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रसार के चलते मानव-संघर्ष, क्रांति, प्रगति-दुर्गति से प्रभावित जीवन-सागर में उठने वाले ज्वार भाटा को दिग्दर्शन करने वाली पत्रकारिता अत्यन्त महत्वपूर्ण हो चुकी है। जनता, समाज, राष्ट्र और विश्व को गरीबी का भूगोल, पूँजीपतियों का अर्थशास्त्र और नेताओं का समाजशास्त्र पढ़ाने में पत्रकारिता ही सक्षम है। इस जीवंत विद्या से जन-जन के दुख-सुख, आशा-आकांक्षा को मुखरित किया जाता है।
'जीवनं सत्यशोधनम्' के अनुरूप पत्रकारिता जन-जन के चिन्तन तथा चरित्र को प्रभावित करने में अग्रगण्य है। पत्रकारिता जन-भावना की उद्घोषिका है। सभ्यता और स्वतंत्रता की वाणी होने के साथ ही वह विश्व में क्रांति की अग्रदूतिका है। चार विरोधी पत्र चार हजार संगीनों से अधिक घातक है जैसा कि अकबर इलाहाबादी का कथन है-
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।
पत्रकारिता लोकमानस के साथ प्रत्यक्ष संवाद का एक जीवंत रचनात्मक माध्यक है। युगबोध की अभिव्यक्ति, जनेचतना के प्रसार और बौद्धिक जागरण में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका आरम्भिक काल से ही स्वीकार की गयी है। हमेशा से पत्र-पत्रिकाएँ पाठकों को वैचारिक आयाम देती रही हैं, उनके बौद्धिक स्तर को विकसित करती रही है और समय की सही पहचान के लिए शिक्षित भी करती रही है।
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