अंग्रेज़ व्यापारी के रूप में हमारे यहाँ आए और अपनी चालाकी, कूटनीति और बर्बरता के बल पर भारत-भूमि के शासन-स्वामी बन बैठे। अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए उन्होंने यहाँ हर प्रकार के कठोर दमन, शोषण और उत्पीड़न से काम लिया। उन्होंने यह नीति अपनाई कि हिन्दुस्तान के अन्दर कोई भी देशी राज ऐसा बाक़ी न रहने पाए, जो या तो अग्रेज़ों की ताक़त के सहारे क़ायम न हो या जिसका समस्त राजनीतिक कारोबार पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथ में न हो। इसी नीति को उन्होंने समस्त भारतीय रियासतों पर लागू करने का सफल प्रयास किया। इस नीति का विरोध करनेवाली शक्तियों को अंग्रेज़ों ने बुरी तरह कुचल डाला। रूहेलखंड रियासत भी उन्हीं अन्दरुनी शक्तियों में से एक थी। इसके वीर सपूत पहले तो अग्रेज़ों के दाँत खट्टे करते रहे, परन्तु साधनहीन और साज़िशों का शिकार होकर अंग्रेज़ों के खूंखार पंजों तथा गुलामी की जंजीरों में जकड़ ही गए। पूरे रूहेलखंड में अराजकता, लूटपाट, भय, आतंक और असुरक्षा का साम्राज्य स्थापित हो गया। 1857 के प्रथम महा जन विद्रोह में भाग लेने के कथित जुर्म में वहाँ के हर वर्ग की जनता को चुन-चुन कर सज़ा दी गई। तरह-तरह के कठोर दंड की व्यवस्था की गई। लोगों को सरेआम फांसी दी गई। जिन क्षेत्रों में क्रान्ति का प्रभाव था, उन क्षेत्रों में गाँवों को जला दिया गया। गाँवों की सम्पत्तियाँ-परिसम्पत्तियाँ लूट ली गईं, जब्त कर ली गईं और नष्ट कर दी गईं। अंग्रेज़ बड़ी ही चालाक और धूर्त क्रौम है। वह अपने समस्त काले कारनामों को सही ठहराती रही है। वह कभी, कहीं भी, कुछ कर सकती है और अपने समस्त कारनामों को बड़ी चालाकी और न्यायसंगत भी ठहरा सकती है। महान नाटककार और विचारक जॉर्ज बर्नाई शॉ ने 'द मैन ऑफ डेस्टिनी' में इसी तथ्य को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है: "कोई भी बात एक अंग्रेज़ के लिए इतनी बुरी या भली नहीं है कि वह उसे करने में हिचकिचाए। मज़ा यह कि आप किसी अंग्रेज़ को रंगे हाथों नहीं पकड़ सकते। जब वह आपसे लड़ता है तो देशभक्ति के नाम पर; जब वह आपको लूटता है तब व्यापार के नाम पर; जब आपको वह गुलाम बनाता है तो साम्राज्यवादी सिद्धान्त के अनुसार; जब वह आप पर धौंस जमाता है तो पौरुष के नाम पर; जब वह अपने राजा का समर्थन करता है तो राजभक्ति के सिद्धान्त पर और जब वह राजा का सिर काट लेता है तो प्रजातंत्र के सिद्धान्तों पर। कर्तव्य उसका मूलमंत्र है और यह कभी नहीं भूलता कि जो जाति कर्तव्य को स्वार्थ के आड़े आने देती है वह कभी फूलती-फलती नहीं।"
इस पुस्तक 'नवाब खान बहादुर खान' में फ़िरंगियों की उपर्युक्त विशेषताओं की झलक तो मिल ही जाएगी, रूहेला पठानों की वीरता, देश प्रेम की उत्कट भावना और महान बलिदानों के भी दर्शन होंगे। इसमें रूहेला पठानों की अनेक प्रेरक ऐतिहासिक घटनाएँ वर्णित हैं।
रूहेला पठानों की परम्परा, वीरता, देश-प्रेम और स्वतंत्रता प्रेम के प्रतीक एवं महान स्वतंत्रता सेनानी नवाब खान बहादुर खाँ के जीवन और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने वाले प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ को पढ़कर हिन्दी पाठक वर्ग अपनी इतिहास-ज्ञान सम्पदा में अवश्य ही कुछ वृद्धि महसूस करेगा। साथ ही इस कृति से इतिहास के शोधर्थियों को एक नई दिशा और रहनुमाई भी मिलेगी। यह कृति नवाब खान बहादुर खाँ शहीद के जीवन और व्यक्तित्व का, जिन्दगी और उनके कारनामों का गहन, विशद और सर्वांगपूर्ण विवेचन, देश की आज़ादी के लिए उनके महान बलिदानों की, फ़िरंगियों द्वारा उन्हें सरेआम फांसी पर लटका देने और फ़िरंगियों की मक्कारियों तथा बर्बरता के रोंगटे खड़े कर देनेवाली गाथा तो है ही तत्कालीन इतिहास का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ भी है।
इतिहास की सुधी पाठिका और कुशल प्राध्यापिका जेबा लतीफ़ ने संबंधित विषय-सामग्री को विवेचनात्मक, गवेषणात्मक और प्रामाणिक बनाने का सफल और सराहनीय प्रयास किया है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देनेवाले मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों और देशप्रेमियों के जीवन और व्यक्तित्वों पर प्रकाश डालनेवाली पुस्तकों की बहुत कमी है। ऐसे में जेबा लतीफ़ की यह कोशिश अंधेरे में चिराग़ रौशन करने के समान है। हिन्दी जगत् इस पुस्तक का स्वागत करेगा, ऐसी आशा है।
इस पुस्तक के छपने में महामहिम् श्री टी. वी. राजेश्वर राव, राज्यपाल उत्तर प्रदेश एवं अध्यक्ष रामपुर रज़ा लाइब्रेरी बोर्ड और उसके माननीय सदस्यों का बहुमूल्य योगदान रहा है जिसके लिये हम उनके आभारी हैं।
इसके अलावा सचिव, एंव संयुक्त सचिव, भारत सरकार, संस्कृति विभाग का भी आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने रज़ा लाइब्रेरी के पब्लिकेशन प्रोग्राम के लिये अच्छी धनराशि उपलब्ध करायी। डा. अबू साद इस्लाही, असिस्टेंट लाइब्रेरियन का भी आभार प्रकट करना आवश्यक है जिन्होंने मेरी सहायता की।
रज़ा लाइब्रेरी की श्रीमति बिलक्नीस फ़ास्क्री एंव कुमारी मोहनी रानी ने पुस्तक के छपने में जो सहायता दी है उसके लिये हम उनका आभार प्रकट करते हैं।
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