12 जुलाई 1957 को जन्में राधेश्याम शर्मा गाँव हरेवली, दिल्ली के मूल निवासी हैं। दिल्ली पुलिस में चालीस साल की उत्तम सेवा के चाद 30 जून 2018 को मिनिस्ट्रियल कैडर के इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृति के दिन उन्होंने सेवानिवृति के बाद मिले लाखों रुपये के फंड को प्रधान मंत्री सुरक्षा राहत कोष, शहीद परिवार फंड, गुरुकुल, मन्दिर, विक्लांगों, बीमारों, गरीबों, विधवाओं, असहाय लोगों में वितरित और दान कर दिया। इन्होंने कई बार रक्तदान किया और मरणोपरांत नेत्रदान की भी घोषणा की जिसकी बजह से इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी ने इन्हें अपना आजीवन सदस्य बनाया।
दिल्ली पुलिस में तैराक, लेह लद्दाख की दुर्गम यात्राओं और साहसिक खेलों में भाग लेने की वजह से इन्हें साहसिक आदमी के रूप में पहचान मिली। इन्होंने सेवाकाल में कई बार भारत भ्रमण किया और विभिन्न विषयों और यात्राओं पर संस्मरण लिखे जो कई सारे अखबारों और पत्रिकाओं में छपते रहे। वे अपने सरकारी काम को भी उतने ही जज्बे से लिखते और अपने लेखन से गाँधी की तरह सत्य के प्रयोग भी करते थे। वे जितना प्रशासनिक काम को महत्व देते थे उतना ही फिल्ड वर्क पर भी नजर रखते थे जिसकी वजह से उन्हें "असाधारण कार्य पुरस्कार भी मिला जो आमतौर पर किसी मिनिस्ट्रियल कैडर के अधिकारी को नहीं मिलता।
सामाजिक सेवा के कार्यों में उनकी बचपन से ही बेहद रुचि रही। भूकंप पीड़ितों की सेवा के लिए वे गढ़वाल हिमालय तक गए। दिल्ली और अपने गाँव में सामाजिक और साँस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए "विजिलैंट सिटीजंस" नामक संस्था पंजीकृत करा कर समाज सेवा के कार्यों का एक कीर्तिमान स्थापित किया जो यहां कुछ शब्दों में लिखना सम्भव नहीं। सामाजिक जागरुकता बढ़ाने के लिए इन्होंने दिल्ली मंडी हाऊस के मशहूर कला केंद्रों में नाटक मंचनों का भी सहारा लिया। "कुआं काराज का" नाटक में इन्होंने एक ईमानदार मुख्यमंत्री की भूमिका निभा कर काग़ज़ों में बने कुएं का भंडाफोड़ कर भ्रष्टाचार पर प्रहार किया। इसी तरह के एक अन्य नाटक "अधूरा अफ़साना" के माध्यम से इन्होंने प्रकाशकों द्वारा ख्यातनाम लेखकों के शोषण की तरफ समाज का ध्यान आकर्षित करवाया। दोनों ही नाटकों की प्रिंट मीडिया ने शानदार कवरेज दी। अपने विचारों और संस्था द्वारा किए कार्यों को प्रसारण करने के लिए वर्षों "महापंचायत" नाम से बवाना से एक मासिक समाचार पत्र का भी प्रकाशन किया। अपने हरेवली गाँव को समाचारों की दुनिया से जागृत रखने के लिए "हरेवली टाइम्स" की स्थापना और संपादन भी किया।
अब ब्राह्मणों की दयनीय स्थिति का उद्धार करने के लिए "हिंदू बनाम ब्राह्मण पुनर्जागरण आंदोलन" के दौरान महर्षि दधीचि की तरह अपनी हड्डियों को भी दान करने की घोषणा कर अपने जीवन की अंतिम पारी खेल रहे हैं।
इनके पिता पंडित छतर सिंह भी अपने समय के स्थानीय स्तर के अच्छे पहलवान थे। वे भी धार्मिक और परोपकारी भावना के व्यक्ति थे। वे देशी हड्डी रोग विशेषज्ञ थे लेकिन निशुल्क सेवा करते थे।
"ब्राह्मण चार्टर" नामक यह पुस्तक मेरी पहली पुस्तक "हिन्दू बनाम ब्राह्मण पुनर्जागरण आंदोलन" नामक पुस्तक का सार है। इस पुस्तक में ब्राह्मणों की वास्तविक स्थिति, दुर्दशा, दुर्दशा के कारण और ब्राह्मणों का किस तरह उद्धार हो सकता है वर्णन किया गया है है और अंत में ब्राह्मण चार्टर दिया गया है। यह पुस्तक दो खंडों में विभक्त है। प्रथम खंड के अंत में जो ब्राह्मण चार्टर दिया गया है पुस्तक के प्रथम खंड का सार रहै। ब्राह्मण चार्टर का दूसरा खंड (मिश्रित खंड) है। इसमें कुछ चुनिंदा ब्राह्मणों के विचारों का संकलन भी है। मेरा निश्चित विचार है कि यह पुस्तक पढ़ने से ब्राह्मणों का खोया और सोया आत्मसम्मान, स्वाभिमान और जाति सम्मान जाग उठेगा और उन्हें अपने उत्थान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिल सकेगी।
Hindu (हिंदू धर्म) (12733)
Tantra (तन्त्र) (1024)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1913)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1474)
Yoga (योग) (1094)
Ramayana (रामायण) (1387)
Gita Press (गीता प्रेस) (729)
Sahitya (साहित्य) (23219)
History (इतिहास) (8313)
Philosophy (दर्शन) (3408)
Santvani (सन्त वाणी) (2583)
Vedanta (वेदांत) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist